समाज ।
2 . अति संक्षिप्त उत्तर दो ( लगभग 25 शब्दों में ) :
(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है ?
उत्तर : सत्य कठोर होता है , कठोरता और भद्दापन साथ - साथ
जन्मा करते हैं , जिया करते हैं । मनुष्य कठोरता से भागते हैं ,
भद्देपन से मुख मोड़ते हैं । हसलिए सत्य से भी भागते हैं ।
(ख) लेखक के अनुसार कौन-सी ईंट अधिक धन्य है ?
उत्तर : लेखक के अनुसार वह ईंट धन्य है जो जमीन के सात
हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी ।
साथ ही साथ वह ईंट जो कट - छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है
और बरबस लोक - लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है ।
(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर : नींव की ईंट यह चाहती है कि दुनिया को इमारत मिले ,
कंगूरा मिले । वह ईंट खुद को सात हाथ जमीन के अंदर
इसलिए गाड़ दिया ताकि इमारत जमीन के सौ हाथ ऊपर तक
जा सके , उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे , सुनहली
रोशनी मिलती रहे और संसार एक सुंदर सृष्टि देखे ।
(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो ।
उत्तर : कंगूरे की ईंट खुद को महान समझते है । वह यह
नहीं चाहती कि उससे बढ़कर भी कोई ओर हो । इसप्रकार
समाज का यश - लोभी सेवक , जो प्रसिद्ध , प्रशंसा अथवा अन्य
किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है । आज कंगूरे
की ईंट बनने के लिए चारों ओर होड़ा - होड़ी मची है ।
(ङ) शहदत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते है और क्यों ?
उत्तर : शहदत का लाल सेहरा कुछ तपेे-तपाए लोग ही पहनते
है क्योंकि वे समाज की आधारशिला होती है। वह लोग समाज
के नव - निर्माण हेतु खुद को आत्म - बलिदान कर दिया ।
(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर
बनाया और कैसे ?
उत्तर : लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर
बनाया , जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग
कर दिया । उनमें से कितने जिंदा जलाए गए , कितने सूली पर
जढ़ाए गए , कितने वन - वन की खाक छानते जंगली जानवरों
के शिकार हुए , कितने उससे भी भयानक भूख - प्यास के
शिकार हुए ।
(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है ?
उत्तर : आज कंगूरे की ईंट बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी
मची है , नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है ।
इसलिए लेखक द्वारा देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती यह है
कि वे नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और
भारतीय समाज के नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें ।
3. संक्षिप्त उत्तर दो ( लगभग 50 शब्दों में ) :
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं , पर
उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ?
उत्तर : दुनिया चकमक देेेखती है , ऊपर का आवरण देेखती है,
आवरण के नीचे जो ठोस सत्य छिपी है उस पर लोगों का
ध्यान नहीं जाता । समाज के लोग प्रसिद्धि , प्रशंसा अथवा अन्य
किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है । वे यश-लोभी
सेवक बन गया है । इसलिए मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को
तो देखा करते हैं , पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान नहीं
जाता ।
(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने
के लिए क्यों आहवान किया है ?
उत्तर : लेखक के अनुसार भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के
सैनिकगण नींव की ईंट की तरह थे , जबकि स्वतंत्र भारत के
शासकगण कंगूरे की ईंट निकले । समाज के नव - निर्माण हेतु
वे लोग आत्म - बलिदान के लिए प्रस्तुत होंगे जो नींव की ईंट
है । जो देश - हित के लिए अपना बलिदान दें चूकें हैं । इसलिए
लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के
लिए आहवान किया है ।
(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं ,
परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते ?
उत्तर : लेखक के अनुसार समाज केे ज्यादातर लोग आज यश-
लोभी सेवक बन गये है । वे अपनी स्वार्थवश काम करना पसंद
करते है । वे समाज के आगे आकर कुछ साहस जुटा नहीं पाते
। इसलिए सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं
, परंतु नींव की ईंट बनना नहीं चाहते ।
(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों ?
उत्तर : लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय
ईसा की शहादत को देना चाहता है । क्योंकि उन लोगों ने उस
धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया । उनमें से
कितने जिंदा जलाए गए , कितने सूली पर जढ़ाए गए , कितने
वन-वन की खाक छानते जंगली जानवरों के शिकार हुए ,
कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए ।
(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ ?
उत्तर : हमारा देश उन वीर पुरूषों के बलिदानों से आजाद हुआ
जिन्होंने बिना किसी यश - लोभ के देश के नव - निर्माण हेतु
आत्म - बलिदान दे दिया । भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के
सैनिकगण नींव की ईंट की तरह थे , जिसके के कारण हमारा
देश आजाद बने ।
(च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान
किया था ?
उत्तर : दधीचि मुनि ने वृत्रासुर का नाश करने के लिए हड्डियोंं
के दान करके अपना बलिदान किया था । भारतीय इतिहास में
मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले
मात्र दधीचि ही थे । देवताओं के मुँह से यह जानकर कि उनकी
अस्थियों से निर्मित वज्र द्वारा ही असुरों का संहार किया जा
सकता है , उसने अपना शरीर त्याग कर अस्थियों का दान कर
दिया जिससे बने धनुष द्वारा भगवान इंद्र ने वृत्रासुर का संहार
किया था ।
(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है ?
उत्तर : भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने कहा है कि
देश के सात लाख गाँवों , हजारों शहरों और सैकड़ों कारखानों
के नव-निर्माण हेतु नींव की ईंट बनने के लिए तैयार लोगों की
जरूरत है , लेकिन नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही
है । लेखक ने नौजवानों से आहवान किया है कि वे नींव की
ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के
नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें ।
(ज) ' नींव की ईंट ' शीर्षक निबंध का संदेश क्या है ?
उत्तर : ' नींव की ईंट ' शीर्षक निबंध के माध्यम से लेखक हमें
यह संदेश देना चाहता है कि समाज के नव-निर्माण हेतु , हमें
प्रसिद्धि , प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश त्याग करके
समाज के लिए काम करना चाहिए । हमें एक सच्चा और निडर
इंसान बनके समाज के लिए एकसाथ मिलकर काम करना है ।